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कबाड़ खाना 
बहुँत कुछ पड़ा है 
इस कबाड़ खाने मै
उठालो जिसको  जो उठाना है 
कंजूसी ना करो 
कुछ पाने मै
बहुँत कुछ पड़ा है ........
रंग बिरंगी टोपी 
सफदे सा कुर्ता
और चमकीली सलवार 
पहनकर मुहँ मै चबा लो पान
बहुँत कुछ पड़ा है 
नानी दादी की कहानी 
बचपन की यादें 
उस पर बरसातें 
फिर कुछ बीती बातें
कर लो एक एक को तारो-ताज़ा 
आपने आपनो को 
बहुँत कुछ पड़ा है ........
पाने  को कुछ ना रहा 
ना ही रहा खोने को
फिकर नहीं कबाड़ खाने 
इस धोंयें मै गम हो जाने को
बहुँत कुछ पड़ा है 
इस कबाड़ खाने मै
उठालो जिसको  जो उठाना है 
कंजूसी ना करो 
कुछ पाने मै
बहुँत कुछ पड़ा है ........

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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