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तनहाई का मंजर

तनहाई का मंजर

तनहाई का मंजर
इतना सुअहना था
सुबह शाम हमारा
मैखाने मै आना जाना था

मीले दर्द को
जर सहलाना था
जाम उठाकर हमे
गले को नहलाना था

तनहाई का मंजर ........

फिर यहाँ कम
मय नै किया
बांहें फैलकर
मुझे शय दिया

तनहाई का मंजर ........

लड़खडते क़दमों नै
मुझे साथ दिया
गम के समुद्र से
मेरा बेडा पर किया

तनहाई का मंजर
इतना सुअहना था
सुबह शाम हमारा 
मैखाने मै आना जाना था




 बालकृष्ण डी ध्यानी
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