मी थै खुद लगी च
घर बठी दूर मी
मी थै चा कु बोलणु
खुद अयेग्या खुद अयेग्या
दुड़ी का म्यार मनख्यूं मा
मी थै खुद लगी च
अंधेरु अंधेरु अंधेरुच्या
हे बोया मन मा मयारू
काली रात भी अंधेरी च्या
आंख मा छायु अंधेरु च्या
मी थै बोये खुद लगी चा
दांडू मा कोयेडी छायी होली
बरखा की रीघ लगी होली
सरग चाल चमकणी होली
प्रीत मेरी अंखा भेगणी होली
मी थै जिया खुद लगी चा
फूल बोरंस खिला होवाला
प्योली पिन्ग्लानी होवाली
हरी भरी डंडी सजी होली
सरयुं मा धान बुतना वाहला
मी थै गँवा खुद लगी चा
ऋतू एई नी ऋतू गईनी
नींद अंख्यों मा नी सरेनी
सरू रात सरू दिन हे गड देश
यादों की या कुथेगी सजेणी
मी थै मुल्की खुद लगी चा
भैर गावं कु मूलक ये दीदा
मी थै कीले च भरमाणो
टका की सब माया चा दीदा
उडी ले गयाई म्यार परणु
मी थै आप्डू खुद लगी चा
नाती गुँटी बाटी मेरी
मी थै ध्याई चा लगाणु
माटा मा छुटु बचपन
कीले व्हालू आज बोलणु
मी थै उत्ताराखंड खुद लगी चा
घर बठी दूर मी
मी थै चा कु बोलणु
खुद अयेग्या खुद अयेग्या
दुड़ी का म्यार मनख्यूं मा
मी थै खुद लगी च
बालकृष्ण डी ध्यानी
पहाड़ बोला रहा है हमे ..............
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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