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पीड़ा


 पीड़ा


मेरी पीड़ा  कैली  णी  जाणी  
मी  छुं  पहाड़  की  नारी 
मेरी  आंखी  मी थै   भारमानी  
मनख्यूं  थै  मेरी  रुलाणी  

हे पहाड़ की नारी तेरी व्यथा च भारी
तैरी खैरी कैणी णी जाणी 
तू छे पहाडा की नारी 

मेरी पीड़ा  कैली  णी  जाणी  णी जाणी .......(३)


बुरांश  खिला  यूँ  डालियुं  मा 
मी  छु  उदशा  उपरी  सनीयुं   मा  
दीप  बत्ती  जली  दूर  कुडीयुं  मा  
मी छुं  दूध  सरनु  इन  छनीयुं   मा  

हे पहाड़ की नारी तेरी व्यथा च भारी
तैरी खैरी कैणी णी जाणी 
तू छे पहाडा की नारी 


मेरी पीड़ा  कैली  णी  जाणी  णी जाणी .......(३)


रात सरी यूँ  पहाड़ों  मा  
नींद  णी  ये   यूँ  अख्यूं  मा  
बैठी  जा ऐकी   तीबरी   मा  
मी  छुं  लगलू अपरी  खैरी  का 

हे पहाड़ की नारी तेरी व्यथा च भारी
तैरी खैरी कैणी णी जाणी 
तू छे पहाडा की नारी 

मेरी पीड़ा  कैली  णी  जाणी  णी जाणी .......(३)

दूर घुघती घुरण लगी 
मी थै  मैत की याद आण लगी 
स्वामी दूर परदेश गयाँ
जीकुड़ी छुड कंण कै रायं 

हे पहाड़ की नारी तेरी व्यथा च भारी
तैरी खैरी कैणी णी जाणी 
तू छे पहाडा की नारी 

मेरी पीड़ा  कैली  णी  जाणी  णी जाणी .......(३)

जब मेला कुथीग लाग्यां 
गीतंगों का गीत लाग्यां 
जब ढोलकी की लगी थाप
मी थै आइगे भै-भैनु की याद  

हे पहाड़ की नारी तेरी व्यथा च भारी
तैरी खैरी कैणी णी जाणी 
तू छे पहाडा की नारी 

मेरी पीड़ा  कैली  णी  जाणी  णी जाणी .......(३)

यकुली यकुली ये  दीण-रात
यकुली ये गै  बारामाष
सारा दीं पुणगडीयूँ  तुडाना
रती बैईली चलहु जलाणा

हे पहाड़ की नारी तेरी व्यथा च भारी
तैरी खैरी कैणी णी जाणी 
तू छे पहाडा की नारी 

मेरी पीड़ा  कैली  णी  जाणी  णी जाणी .......(३)

मी छु बाब मी छु बोई 
मेरी खैरी ना जंडूदू कोई  
सब म्यार म्यार दागडी
मी यकुली अपरा दुःख मा खोयी 

हे पहाड़ की नारी तेरी व्यथा च भारी
तैरी खैरी कैणी णी जाणी 
तू छे पहाडा की नारी 

मेरी पीड़ा  कैली  णी  जाणी  णी जाणी .......(३)

मेरी पीड़ा  कैली  णी  जाणी  
मी  छुं  पहाड़  की  नारी 
मेरी  आंखी  मी थै   भारमानी  
मनख्यूं  थै  मेरी  रुलाणी  

हे पहाड़ की नारी तेरी व्यथा च भारी
तैरी खैरी कैणी णी जाणी 
तू छे पहाडा की नारी 

मेरी पीड़ा  कैली  णी  जाणी  णी जाणी .......(३)



बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ 
मेरा ब्लोग्स 
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत —

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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