छुयीं छुयीं मा याद आयगै मेरा देश जी
छुयीं छुयीं मा
छुयीं निकली म्यार गड़ा-देश की बात जी
ये परदेश्मा याद आएगे
म्यार देश की याद जी
सरुक उडी गई
मयारू जी अपर डैर जी
नींदी पडी गै
मी थै म्यार अन्ख्युं का घेरा जी
छुयीं छुयीं मा
स्प्नीयुं मा भी उनका डैर जी
उन छुयीं यादों का फिर जी
रात बीती बीते
अन्ख्युं मा अशून का रेघा जी
छुयीं छुयीं मा
याद नी छुटी जांदा
दगडी दगडी पीछा आंदा
ओ रुन्ल्याँ गद्न्य पुन्गादी मा
मी जंदु मा मार एक फेरा जी
छुयीं छुयीं मा
ओं काफल कीन्गुडा पैड़ जी
ओ छुट पण की याद
ओ दुई घड़ी की साथ
ओ चरखी वाला फेरा जी
छुयीं छुयीं मा
जब गाईच मेरी बारात
दागड़या नाची सारी रात
मेरी ब्योली थै लाणकुन
याद येगे ओ घड़ी ओ बैल जी
छुयीं छुयीं मा
ओ कुथीग ओ मेला
ओ साथी ओ दागड़या
ओ घुगथी ओ हीलंषा
ओ चीतरी-पत्री मा छुपी याद क फेरा जी
छुयीं छुयीं मा
मेरा गड देश की बात जी
कण गुजरी एक एक रात जी
घामा का दीण तीशलु बात जी
झाम झाम बरसता का फेरा जी
छुयीं छुयीं मा
छुयीं छुयीं मा
छुयीं निकली म्यार गड़ा-देश की बात जी
ये परदेश्मा याद आएगे
म्यार देश की याद जी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत —
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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