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अकेला चल

अकेला चल

चल  कंही  दिल  तु  दूर कंही चल
बीती  दिन  करे   मजबोर अब
यहं  नहीं  कोई  तेरा  अब 
छाई है धुल  हर  जगह  अब
नहीं तेरा बसेरा यहं चल  कंही  दिल  दूर  चल

करे  तु  क्यूँ  परवाह  अब
ओ  जब  नहीं  रहा  तेरा  अब
यहं   फरेबा  ही  फरेबा डेरा  अब
जो  गम  के  हाथों का  घेरा  अब 
नहीं तेरा बसेरा यहं चल  कंही  दिल  दूर  चल

रेत  का  समंदर  पर तेरे निशा अब
मंजी  मेरे  अब   मुझ से क्यों  खफा अब  
साहील  का   मुझ को ना पता  अब
ढ़ोंडै   तेरे कदम   के  निशा  अब 
नहीं तेरा बसेरा यहं चल  कंही  दिल  दूर  चल

सुखी  डाल  का मोसम हर और है अब
दूर रहा मै खड कोई मीर्ग जाल है अब
न  कोई  मंजील  ना कोई  साथी  अब
ना  कोई  रह  गीर  ना  थकन  अब
नहीं तेरा बसेरा यहं चल  कंही  दिल  दूर  चल

चल  कंही  दिल  तु  दूर कंही चल
बीती  दिन  करे   मजबोर अब
यहं  नहीं  कोई  तेरा  अब 
छाई है धुल  हर  जगह  अब
नहीं तेरा बसेरा यहं चल  कंही  दिल  दूर  चल


बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत




कवी बालकृष्ण डी ध्यानी

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