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अपरी भाष अपरी बोली बचुँला

अपरी भाष अपरी बोली बचुँला

चल दीदा चल भुलाह
अपरी भाष अपरी बोली बचुँला
अपरी भाष थै आपण बचुला
गड्वाली भाष हे मेरी माय
तेरु उपकार हम कण के चुकुंला

सुन्धी सुन्धी सुघंद लंणदी
म्यार माटा की म्यार गढ़वाला की
बुरंषा का फुल खिला म्यार डाला की
मेरी बोई की दुधऊ की धारा की
चल दीदी चल भुली
अपरी भाष अपरी बोली बचुँला

मेरी बोली अब तक भाषा णी बन पाई
मेरी जीकोड़ी बोया रोदयाई
यूँ आंखी का पणी बोलाणी छ बुअड़
एक ना एक दिन आलो यूँ पहाड़ मा
चल बुअड़ चल बुअड़ी
अपरी भाष अपरी बोली बचुँला

चल दीदा चल भुलाह
अपरी भाष अपरी बोली बचुँला
अपरी भाष थै आपण बचुला
गड्वाली भाष हे मेरी माय
तेरु उपकार हम कण के चुकुंला

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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