अधुरी बात
जाग उठी कसक
कोने मे बार बार
पल ये पलछिन
जो छुड गये मेरा साथ
उस दिन भी गीरी
ये नीगोडी बरसता
आज तक बरस रही
मेरे नैनो के साथ
छुड गये वो तनहा
अपनी यादों के साथ
लहमा नहीं छुटती यादें
इन सांसों के साथ
बदली मे खिली चांदनी
वो अधुरी बात
हमदम आजा
पुरी करने बात
एक एक बात
जो हमे है याद
ये मेरे सजना
वो दिन वो रात
जाग उठी कसक
कोने मे बार बार
पल ये पलछिन
जो छुड गये मेरा साथ
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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