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जाग


जाग 

कर नई चेतना 
आपने मै संचार 
अपने विचारों को 
बना अपना आधार

कलम तान अपनी 
बना दे नयी क्रांती 
जीवन संघर्ष आज 
शक्ती रस को ढल 

उंगलीयुं के साथ 
इस कोरे कागज पर 
अब साकार कर 
नये विश्व को आज 

कदम कदम मीला
अपनी आशा बड़ा 
कन्धों से कन्धा जोड़ 
आयेगी वो निशं 

तिरंगा ले हाथ 
भारत के साथ 
जगा उठा जन 
दहल गये मन 

अलस कर दुर
कम है भरपूर 
जाग अब जाग 
मंजील नहीं दुर 

कर नई चेतना 
आपने मै संचार 
अपने विचारों को 
बना अपना आधार

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 


कवी बालकृष्ण डी ध्यानी 
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