मै अकेला हों.... शायद
जाना कहीं ,गया कहीं
सोच कुछ,हुआ कुछ
पहेली सा हैरान हों
लगता है मै परेशान हों
मिलाओ मुझे आज
खुद से ही अन्जान हों
अपके साथ हों या खड़ अकेला हूँ
इस भीड़ का मै बस एक हीस्साह हों शायद ?
मै अकेला हों .....................
लड़ रहा सब के लिये
अकड़ रहा है किस के लिये
तु भी अजब एक बांदा है
गिर गिर कर संभला है
बंद एक तेरा कमरा है
खोला ही नहीं कीसी नै तुझ को
उसमे लटका एक फंदा है
लगत है शायद मै अकेल हों?
मै अकेला हों .....................
अजब ये रिश्ता है
थोडा थोडा सा रिसता है
पहाड़ों की चुटी से जब गीरता है
थोड थोड घिसता है
सागर मै मिलने
को देख आज मचलता है
सागर मै मील कर भी अकेला है शायद ?
मै अकेला हों .....................
जाना कहीं ,गया कहीं
सोच कुछ,हुआ कुछ
पहेली सा हैरान हों
लगता है मै परेशान हों
मिलाओ मुझे आज
खुद से ही अन्जान हों
अपके साथ हों या खड़ अकेला हूँ
इस भीड़ का मै बस एक हीस्साह हों शायद ?
मै अकेला हों .....................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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