वो भी हस रही थी
वो भी हस रही थी
ये भी हस रही थी
जीन्दगी जो जा चुकी थी
और जो जा रही है
वो भी हस रही थी
बड़ी चुप चाप थी
खड़ी थी चौरहा पर
चली जा रही थी
ओ सोच चुकी थी
या वो सोच रही है
वो भी हस रही थी
अकेले मै दबी जा रही
दुःख अपने सही जा रही थी
कुछ बुन रही थी
ख्व्बा जो चुन रही थी
कुछ टूट चुके थै
कुछ टूट रहे थै
वो भी हस रही थी
संग के साथी संग
पल पल जुडी जा रही थी
कब एक पग आगे
दूजे पग पीछे जारही थी
समय की दुओड मै
वो छुट चुकी थी
या छुट रही थी
वो भी हस रही थी
वो भी हस रही थी
ये भी हस रही थी
जीन्दगी जो जा चुकी थी
और जो जा रही है
वो भी हस रही थी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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