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हर एक


देव भूमि बद्री-केदार नाथ
हर एक 

अँधेरा घबराया 
मन सकुचाया 
तन झुंज-झलाया
जोर से चिलाया 
दुःख से घिरा 
शब्द है क्यों चुप
अँधेरा घबराया .........

बड़-बोला जग 
सब है यंह ठग 
बस धन यंह रब
कर रहा बक बक 
मन सकुचाया............

इधर की उधर 
जाने ओ कीधर 
भीतर ही भीतर 
ओ है तीतर बीतर 
तन झुंज-झलाया..........

आवाज है गुम
सारी फिजा है सुम 
आवाज की गुंज
फिर एक बार सुन
जोर से चिलाया ............

दर्द की पुकार 
चीखे बार बार 
अंधेरे मै रोये 
उजाले मै खोये 
दुःख से घिरा ...............

शोक से उभर नहीं 
शब्द कह नहीं 
पन्ने मै छिपा रहा 
अपने मै घिरा रहा 
शब्द है क्यों चुप.............

देखा मेर मन 
तन से कुछ कह 
सुख के संग 
दुःख भी सहा 
अँधेरा से वो घबराया .........

अँधेरा घबराया 
मन सकुचाया 
तन झुंज-झलाया
जोर से चिलाया 
दुःख से घिरा 
शब्द है क्यों चुप
अँधेरा घबराया .........

बालकृष्ण डी ध्यानी 
देवभूमि बद्री-केदारनाथ 
मेरा ब्लोग्स 
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी 
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