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मेरी बेटीया हो तुम

मेरी बेटीया हो तुम 

अश्कों को समेटों 
गम अपना लों 
खुशी के लिये 
तेरी जीन्दगी के लिये 
अश्कों को समेटों 

नन्ही सी मुस्कान 
मेरी पहचान 
छु ये असमान 
परों पर सवार 
अश्कों को समेटों 

ना आयेगी आंचा 
ढहलोंगा उस सांचा 
कांटों रखोंग दुर परे 
खुश्यीं अब बाँट 
अश्कों को समेटों 


सोने की पुडीया
जादु की डीबीया 
स्वप्न सलोने मे 
खोयी गुडीया 
अश्कों को समेटों 

घर को रोशन 
अगांन की महक 
पापा कहकर 
लीपट जाने वाली 
अश्कों को समेटों 

अश्कों को समेटों 
गम अपना लों 
खुशी के लिये 
तेरी जीन्दगी के लिये 
अश्कों को समेटों 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी 
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