ये क्या वाहई "गैरसैण''
कु बुलाल कु बुलाल
गीची अपड को खोलुला
अपड़ी छुंयीं मा गीचा छान
बाकी सब खींजा छान
कु देखला कु देखला
आंखी अपड़ी को खोलुला
घरा भीतर पडयां छान
बाकी सब सीयां छान
कु चालला कु चालला
अपड़ी खुटी को हीटला
देखा कोणु लुक्याँ छान
बाकी पंगु हुयां छान
कु सुचला कु सुचला
अपड विचार को मंडला
झाड़ टुक अटक्यां छान
बाकी मोल खाण छान
कु लड़ला कु लड़ला
वों दगडी को लड़ला
तलवार जंग लग्यं छान
बाकी खुब थकायां छान
चल गयेला हम जओंला
गैरसैण राजधानी बनोला
देख परदेश गयां छान
बाकी तुंड दारू मा पड्यांछान
ये गड देश ये गड देश मा
कंण चक्रचाल हुन्याँ छान
बल बैठाला ही लगाय छान
चाला कख भग्या छान
कु बुलाल कु बुलाल
गीची अपड को खोलुला
अपड़ी छुंयीं मा गीचा छान
बाकी सब खींजा छान
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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