कोयेडी छायी
दूर कोयेडी छायी होली
अंखो को याद भरमाणी होली
मैता सासरास खुद खुदैणी होली
डंडी देश मा म्यार गढ़ देश मा
दूर कोयेडी छायी होली .........
घिर घिर कै आईणी होली
झिम झिम बरसणी होली
कब यख कब वख भीगेणी होली
मनख्यूं का रलूँ मा बोगाणी होली
दूर कोयेडी छायी होली .........
अंतर मणमा भीड़णी वाली
जीकोडी भीतर भीतर झुरणी वाली
एक बेल सी लगुली यकुली वो
चरखी सी ये गर गर फीरणी होली
दूर कोयेडी छायी होली .........
काली अंधेरी रातमा जुगनी सी
अपरी सोच मा जलणी बुझणी होली
बत्ती की बेल सी लप लपटा करणी होली
दियू का घेरा मा खुद तै पाणी होली
दूर कोयेडी छायी होली .........
छणी मा खुअट से बंधी गुआड़ सी
टुटा फूटा माटा कूड़ा कै क्वालों सी
उकाला मा चढ़द उन खुटी की पीड़ा सी
कब विपद टलेल म्यार गड की नारी की
दूर कोयेडी छायी होली .........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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