मै भी इन्सान
मै भी एक इन्सान हों
आप की तरह भग्यशाली कंहा
कोप्षण का शिखार हों
अपनी अपनी किस्मत है
पर तुमसे बहुँत हैरान हों
मिलाता है सब कुछ तुम्हे
पर मै ढांचे का परिमाण हों
हस्ती मेरी कुछ भी नहीं
पर तुम से मै शर्मशार हों
मै भी एक इन्सान हों
दाने पानी को तरसता मै
अपने अस्तीत्व से लड़ता मै
आपकी एक नजर उदारता
को कई सालों से तरसता मै
मै भी एक इन्सान हों
अन्ना जब करते तिरस्कार तुम
क्या तुम्हे तब भी मै याद आता नहीं
शराब और शबाब मै डूबे रहते तुम
उस एक दाने दाने को तरस जाता मै
मै भी एक इन्सान हों
सर मेरा झुखा होआ देख
कद तुम्हरा अब तनता क्यों नहीं
मेरी इस छ्वी को देखकर भी
अब तू क्यों बदल जाता नहीं
मै भी एक इन्सान हों
मै भी एक इन्सान हों
आप की तरह भग्यशाली कंहा
कोप्षण का शिखार हों
अपनी अपनी किस्मत है
पर तुमसे बहुँत हैरान हों
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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