रजुँल
रजुँल जो रुसवा होवा
ईबादतगाह तबाह होवा
रोशनी नुरे मोहब्बत की
लिफाये कब्र के गार होवा
वफ़ाये वादीयाँ तरनुम सी
बेवफाई बेवक़त शुमार होवा
वादाये वादा खिलाफी दर से
बीच बाजार वो नीलाम होवा
तनहाई दिलये फुर्सत की
विरानो मै अब आबाद होवा
खामोशी ही खामोशी थी यंहा
अब मेरा वंहा आगाज होवा
टुटा ये दर्पण के फरश पर
नाकाम इश्क का ये अंजाम होवा
रजुँल जो रुसवा होवा
ईबादतगाह तबाह होवा
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी

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