गुनाह या मजबुरी ?
बाल मजदुरी
एक गुन्हा है पर ?
सुली पर चढ़ा खुदा है पर
कानुन कैसे जुदा है पर
घर का चूल्हा बुझा है पर
आंखें रोती रहती है
दर्द क्यों जुदा है पर
बाल मजदुरी
एक गुन्हा है पर ?..........
भुख है ऐ पेट पर
अमीरों से कोशों दुर पर
दो शब्द उसके पास पर
गरीबी के नीचे दबा है पर
आँखों से दर्द छलकता पर
कीसी को नजर नहीं आता पर
दिये की रोशनी जलता पर
अँधेरा अब भी साथ पर
बाल मजदुरी
एक गुन्हा है पर ?..........
गुनाह है या मजबुरी पर
काम करना जरुरी पर
गर एक दिन छुटा पर
दाना पानी से रिश्ता टूट पर
किस को है ना इसकी परवाह पर
समाज मेर सोया सोया सा पर
क्यों करैं मेरी फ़िक्र पर
लगा हो अपनी मजदुरी पर
दुनीया बनाये दुरी पर
ना जाने मेरी यूँ मजबुरी पर
बाल मजदुरी
एक गुन्हा है पर ?..........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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