अकेली
मोमबत्ती
जलती रही
पिघलती रही
माध्यम कभी
कभी वो तेज
हवा के झोकों
से लडती रही
मोमबत्ती
जलती रही .........................
चुप चाप
अपना गम
वो सहती रही
बीते पलों को
वो याद करती रही
मोमबत्ती
जलती रही .............................
अंधेरे से वह
अकेले लडती रही
लौ से जल जलकर
रोशनी फैलती रही
अपने उस अंधेरे मै
खुद को खोजती रही
मोमबत्ती
जलती रही
मोमबत्ती
जलती रही
पिघलती रही
माध्यम कभी
कभी वो तेज
हवा के झोकों
से लडती रही
मोमबत्ती
जलती रही .........................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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