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खाक



खाक

रिश्तों को खाक होते देखा है 
अपनों को राख होते देखा है 

इल्ताजयाए इश्क मै बस इतना ही सही है 
इस भस्म मै मेरे गुल खिल जाये कंही 

परवाज मोहब्बत की तकदीर उड़ा ले गया कोई 
इस जिश्म के पिंजर मै ना बचा पाया कोई 

मोहब्बत का तराना ना गाये अब कोई 
बेवाफ मोहब्बत को रुसवा ना बनाये कोई 

दीवारों पर लिखकर बदनाम कर जायेगा कोई 
तेरी महफ़िल से तनहा आज चला जयेगा कोई 

कोई किसी की शिकायत ना करेगा यंहा 
बदनामी की गलफ़त को सिरोंताज करेगा ये जंह 

टुटा होवा दिल रोरोकर गायेगा कंही 
विरानो मै अकेला अब नजर आयेगा कंही 

बद्कीस्मती इस तरहं साज बजायेगी कंही 
तनहाई के इस मातम मै शाहनाई बजी हो कंही 

रंगीनीयुं को रुक्सत कर जायेगा कोई 
पतझड़ मै मुरझा होवा गुल नजर आयेगा कोई 

फिरते रहै दरबदर एक मुलकात मै कोई 
अफोशोश आज इधर ना गुजरा कोई 

नाराज नाराज अब ये मोसम लगता है 
खफ़ खफ़ अब हर नजार लगता है 

मीलों तक देखो एक उदासी छायी है 
सासुं के करीब वो देखो वो चली आयी है 

दिये की तरह अब जलना लिखा था 
अंधेरो मै ही अब चलना लिखा था 

जमीन से दो बांह अंदर घर है मेरा 
बेचैन हूँ वंहा भी जंह कब्र है मेरा 

रिश्तों को खाक होते देखा 
अपनों को राख होते देखा 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com 
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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