गुल
युं ही चला जाओंगा
याद किसी को ना आऊँगा
खामोशी की कब्र गाह मै
दफ़न सा हो जाऊंगा
वंही पर भी मै
मोहब्बत के गुल खिलओंगा
मुकदर दस्तुर से रुसवा होआ मै
मोहब्बत को ना रुसवा कर जाऊंगा
दिल मेरा टुटा सही
पर किसी का जोड़ जाऊंगा
बोल लिखोंगा मोहब्बत के
बोलो मै मई ही मुस्कुराओंगा
गम सुदा रही राहगीर के
हाथों मै जब मै छुट जाऊंगा
गर कोई उठा लेगा मुझे
उसकी दिल से लग जाऊंगा
दर्द ना होगा मुझे तब जाकर
जब किसी के प्यार मै स्वीकार जाऊंगा
मर कर मेरी मोहबत को पान्हा मिली गी तब
जब फिर गुल बनकर किसी के हाथ मै आऊँगा
काँटों के संग खिलता जाऊंगा
प्रेम ही प्रेम फैलाओंगा
मै यूँ ही चला जाऊंगा
याद किसी को ना आऊँगा
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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