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पनाह


पनाह 

देख रहा खड़ा खड़ा 
अपने सर के बल पड़ा 
देश भी मेरा सोच राह 
कितने घोटालों को दों ओर पनाह 
एक ना खत्म होता दुजा खडा 
तो दुर खड़ा लाचार पडा है ..................... 


सब से मै आहत होआ
अंत मन मै गर्त होआ
कोई नहीं खडा मै अकेला ही चला 
सब दुर दुर कोई पास नहीं 
मै यंहा एक तमाशागीन सा खड़ा 
अपने आप से लड़ता होआ 
तो दुर खड़ा लाचार पडा है ..................... 


खाकी मै दोष नजर आता है 
घोटालों का उद्घोष नजर आता है 
उनका खोया होश नजर आता है 
तिजोरी भरे काले नोट नजर आता है 
बीका होआ जमीर सपने सजाता 
तो दुर खड़ा लाचार पडा है ..................... 

सच्चाई को यंहा अब ठोकर देता है 
अपने मद मै वो कैसा ऐंठता है 
बस लुटा नै मै सब के सब लगे हैं 
रोड पति से करोड़ पति बन बैठे है 
कैसा ऐ चक्कर देखा इसने चलाया पर 
अपने को ऐसा लपेटा लगाया है 
तो दुर खड़ा लाचार पडा है ..................... 

संसद की गरिमा को तुने ही गिरया 
अपने पैरो पर कुल्हाडी खुद गिराया 
क्या करता है सत्र राज्य लोक सभा मै 
दुरदर्शन से सारा जग उसे देखता है 
खाकी मै नेता मेरे ना अब तो जंचता है 
शवेत रंग मै काला धब्बा नजर आता है 
तो दुर खड़ा लाचार पडा है ..................... 

कब तक तो पनाह देगा ऐसे कार्य का 
कब तक देश संकोचित सोच सहारे जीयेगा 
अब ना जगा बस सोया का सोया रहा जायेगा 
फिर हाथ ना तेरे यंहा कोई भी ना आयेगा 
सारा धन बाहरी मुल्कों मै चला जायेगा 
बस हाथ मले तो बस अब पछतायेगा 
तो दुर खड़ा लाचार पडा है ..................... 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com 
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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