गढ़ कहाणी
ये जीन्दागाणी मा
तेर मेर कहाणी मा
बगाती जांद बगात
देखा दिशा ध्याणी मा
ये जीन्दागाणी मा..................
कब काटै णी कटदु
काबैर सुरा रर चली जांदा
टुका तै डालीयूँ मा
आंखी की साणी मा
ये जीन्दागाणी मा......................
काबैर झोलू काबैर घाम
कब लगी विपदा कब खैर
सुख दुःख का लाग्यां बेर
चली जालो हो जाली देर
ये जीन्दागाणी मा.........................
कीन्गोड़ा सी दाणी जसी
पंतैद्र को मीठो पाणी जसी
मया दर को माया सखी
अपरू नीच सब परायो सखी
ये जीन्दागाणीमा.............................
ना डैर सब यख गैर
गढ़ देश मा को नीच सब भैर
आण जाणद रैला सब
ओंका ना ससरास च ना मैत
ये जीन्दागाणी मा.........................
किले च उदास केले हैरण
गुपचुप किले बैठी छे तो
तिलै कैकी च लगी आस
बगत जाणु तेज पाणी धार
ये जीन्दागाणी मा.........................
ये जीन्दागाणी मा
तेर मेर कहाणी मा
बगाती जांद बगात
देखा दिशा ध्याणी मा
ये जीन्दागाणी मा..................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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