फर्क
फर्क कंहा पड़ता है
ऐ तो होता ही रहता है
अपने पराये के भेद मै
दिन तो बस अब यंहा ऐसे ही कटता है
फर्क ………………….
मै भी अब इस रंग से
रंग गया हों कुछ ऐसे
जो चढ़ होआ है रंग मुझ पर
अब वो उतरेगा कैसे
फर्क ………………….
दुनिया के इस आशीयाने मै
गुंजता है अब ऐ ही नगमा
अब तु भी तो ऐसे गुन-गुनयेगा
आज नहीं तो कल तो भी ये गली आयेगा
फर्क ………………….
किसी को कुछ नहीं लेना है यंहा
ना ही कुछ यंहा देना है
मतलबी हैं सब के सब यंहा
चेहरे के पीछे छिपा एक चेहरा है
फर्क ………………….
अंधकार पास बोलायेगा यंहा
उजाला यंहा से दुर कंही ली जायेगा
जीवन एक बहती होई नदी है ऐ जग
पल बाद सागर मै मिल जायेगा
फर्क ………………….
किसी को किसी फर्क नहीं पड़ता है यंहा
सब झोली अपने भरने मै लगें हैं
चाहे जैसे मिले सीमट लो उसे भुले हैं
पल बाद ये वक़त गुजराता है
फर्क ………………….
फर्क कंहा पड़ता है
ऐ तो होता ही रहता है
अपने पराये के भेद मै
दिन तो बस अब यंहा ऐसे ही कटता है
फर्क ………………….
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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