
पत्थर के शहर मै
एक पत्थर मुझे
पुछे हाल मेरा
क्या है ख्याल है तेरा
लुट गया आज
देख सवाल तेरा
एक पत्थर मुझे
पुछे हाल मेरा ..........................
पत्थरों के शहर मै
पत्थर साँस लेते है
कोंक्रीट के जंगल की
हम ऐ बात करते है
साथ साथ सब रहते है
पर अकेले नजर आते है
एक पत्थर मुझे
पुछे हाल मेरा ..........................
गमले मै अब बस देखो
कागज के फुल खिला करते है
हरियाली के आभास लिये
पल्स्टिक अब यंह सजाते है
ईंट ओर चुना का लैप
चेहरे पर अब लगता है
सीमेंट रिश्तों को मजबुती देता है
एक पत्थर मुझे
पुछे हाल मेरा ..........................
पत्थर अपने को अब घर कहता है
खुद ही खुद पर वो देखो इतराता है
इंसानों की नगरी मै पुजा जाता है
अपने पर ही वो देखो आज इठलाता है
आस्था के नाम पर दूध भी वो पीता है
हमसे ज्याद पत्थर ही अब यंहा जीता है ......३
एक पत्थर मुझे
पुछे हाल मेरा ..........................
एक पत्थर मुझे
पुछे हाल मेरा
क्या है ख्याल है तेरा
लुट गया आज
देख सवाल तेरा
एक पत्थर मुझे
पुछे हाल मेरा ..........................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी

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