मै सोच ने लगा
आज मै सोच ने लगा
आशचर्या सा होआ मुझे मुझ पर
और मै कुछ खोज ने लगा
विशवास नहीं कर पा राहा मुझ पर
कोइ की मै सोच ने लगा
पर मै सोच ने लगा ...........................
आंख बंद कर के मै
अंतर को टटोलता रहा
मीला कुछ नहीं मुझे
पर उसका बोध करता रहा
एकाएक एक लकीर उभरी
इन आँखों की पलकों पर
और मै तो सोता रहा
जग को लगाने लगा की
अब मै अब सोचने लगा ............................
आंखें खुली सब पास थै
पुछाने लगे क्या सोचा आपने
मै भी अनजाना सा बनकर
थोड़ा हाथ को उठकर
उंगलीयुं को हिलाकर
उसे अपने चेहरे पर टीकाकर
उन्हे सोचने का अभास दिखाकर
फिर मै सोचने लगा...............................
पर आज तो मेरी खैर थी
सबके सब बैठे थै सामने अब तक
जर भी उठने का नाम नहीं ले रहे थै
कभी दायें तरफ कभी बायें तरफ
देखता रहता कोनसा रास्ता साफा है
पर उन्होने वो भांप लिया
मैने भी जनाब रास्ता नापा लिया
ओर फिर से गहन मै चला गया
ओर मै सोच ने लगा .......................
तब मैने सोच लिया था
बात उनसे अब मुझे आज करना पड़ेगा
बिना सोचे ना उनसे अब पीछा छुटेगा
आखिरकार खुद से थकाकर
मैने भी सोचना आरंभ कीया
अपने मन का मंथन कीया
ओर शब्दों का शुद्धीकरण कीया
अचानक सोच उभरी मस्तिष्क मै
सोच के बिगेर सत्य को पाना मुश्कील था
सोच ही जीवन है सोच ही सरलता है
सोच मंजील तक पुह्च्ने की पहली सीडी है
इसलिये बंदे अब तो भी सोच
ओर मैने सोच को सोच लिया
ओर फिर मै सोच ने लगा !!!
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ