केलै च केलै
केलै वहली उदास
भुली बैठी से ढयां मा
कीलै रुणी होली माँजी
ये कुडा का कोणा मा
केलै खोज्यांण वहाली बोउजी
खडी अपरी तिबारी मा
केलै च केलै . .….
भुल्हा दादा बाबाजी परदेश च गयां
अपरू देश अपरू गढ़ अपरू कुडा थै छुडी की
सब का सब अब छुडी की गयाँ
एक ढंगी की गुआड़ सी रंभती रयां
केलै च केलै . .….
परदेश का बाटा अब भी णी थकयाँण
घुघुती हिलंशा उड़ उडेकी थकीगयां
गों गओं कैकी सरू गढ़ रीता व्हैणा
बैठाल बच्चा बस दाणा ही ये गढ़ मा देख्याना
केलै च केलै . .….
रामी को बाणबाश कब खत्म व्हालो
कब ये गढ़ मा पलायन रहित सुरज उदये व्हालो
कब तलक ब्याठ्ला एक्ला एक्ला रहला
कब जाकै बसंत बयार दगडी बहाली
केलै च केलै . .….
केलै वहली उदास
भुली बैठी से ढयां मा
कीलै रुणी होली माँजी
ये कुडा का कोणा मा
केलै खोज्यांण वहाली बोउजी
खडी अपरी तिबारी मा
केलै च केलै . .….
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ