आब-ए-तल्ख़
आईना है आक़िबत का
आगा़ज है आगो़श की
आंच है आज़ आजिज़ की
आज़र्दाह आज़माईश की
आईना है आक़िबत का..............
आंचल मै आग अन्त की
आतिश आंधी आक़िल की
आदमियत ही आज आफ़त
आफ़ताब अब आब-ए-चश्म
आईना है आक़िबत का..............
आबरू अब आयन्दा
आम आब-ए-तल्ख़
आरा आश्ना अब आली
आशुफ़्ता है अब आशियाना
आईना है आक़िबत का..............
आसमान आस आब
आहिस्ता की वो आह
आसिम अब आलम आलाप
आब-ए-आईना गिर पडे अब आब
आईना है आक़िबत का..............
आईना है आक़िबत का
आगा़ज है आगो़श की
आंच है आज़ आजिज़ की
आज़र्दाह आज़माईश की
आईना है आक़िबत का..............
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी

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