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गुब्बारे सा उड़ बैठा


गुब्बारे सा उड़ बैठा 

खुद पै ही आज मै हंस बैठा 
जीवन कैसे गुजरा मै बस बैठा 
पलंग पर सोते सोते मै उठा बैठा 
सपना मेरा जैसे अब कुछ कहा बैठा 
खुद पै ही आज मै हंस बैठा ..............
गुब्बारे सा उड़ बैठा 

चाँद सुरज को मैने बस देखा 
सबेरे को मै यूँ ही बंद आँखों से छु बैठा 
संध्या टहल टहल चली संग मेरे
रात को आगोश मै बस ले बैठा 
खुद पै ही आज मै हंस बैठा ..................
गुब्बारे सा उड़ बैठा 

राहों से कभी मै कभी बागों से गुजरा 
ढलते सुरज की निगाहों से गुजरा 
गलियों से देखा था कभी छत पर खड़े खड़े 
आपने आप से यों ही बतीयाते होये 
खुद पै ही आज मै हंस बैठा................ 
गुब्बारे सा उड़ बैठा 

दोपहरी मै कभी पेड की छ्वों मै जा बैठा 
कुऐं के पास प्यास सा मै आ बैठा 
सितारों की कल्पना सागर पार कर बैठ 
जीवन रूपी कविता को विराम अब मै दे बैठा 
खुद पै ही आज मै हंस बैठा................. 
गुब्बारे सा उड़ बैठा 

खुद पै ही आज मै हंस बैठा 
जीवन कैसे गुजरा मै बस बैठा 
पलंग पर सोते सोते मै उठा बैठा 
सपना मेरा जैसे अब कुछ कहा बैठा 
खुद पै ही आज मै हंस बैठा 
गुब्बारे सा उड़ बैठा 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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