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व्यर्थ ही रहा


व्यर्थ ही रहा 

तो दुर ही रहा 
देख तमाशा दुनिया का 
मै मजबुर रहा 
खड़ा खड़ा दुर से 
इस दिल ने कहा मुझ से 
तो दुर ही रहा 
व्यर्थ ही रहा ............

आंदोलन किया जन ने 
मै अलग ही रहा 
द्वार बंद कर कर मन का 
अपने पर मग्न ही रहा 
इस तन ने कहा मुझ से 
तो दुर ही रहा
व्यर्थ ही रहा ............

पत्थर उठाया जन ने 
मै हाथ भी ना उठा सका 
वो पत्थर बना मै 
सडक पर व्यर्थ पडा रहा 
हाथ ने कहा मुझ से 
तो दुर ही रहा 
व्यर्थ ही रहा ............

भागा भागा मै 
अपने से ना भागा सका 
तन मेरा बस खड़ा रहा 
मन बस हरा सा लगा 
जीवन ने कहा मुझ से 
तो दुर ही रहा 
व्यर्थ ही रहा ............

तो दुर ही रहा 
देख तमाशा दुनिया का 
मै मजबुर रहा 
खड़ा खड़ा दुर से 
इस दिल ने कहा मुझ से 
तो दुर ही रहा
व्यर्थ ही रहा ............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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