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नीलामी


नीलामी

लगा दो नीलामी मेरी 
मै खुद को ही बेच राहा 
सारी भुमी बीक गयी है 
बनाऊं अपना घर कंहा 
रहा खड जिस पग पर 
उसे कोई और ठेल राहा 
यह मेला बड़ा गजब 
हर कोई यंह खेल राहा 

लगा दो नीलामी मेरी 
मै खुद को ही बेच राहा 

पानी की कीमत पर 
आज कोई जी राहा 
मट्टी मील जाना बंधे 
क्यों इतना तो येंठ राहा 
गांठा पडी इस मन की 
फंदे मै अब झुल राहा 
देख खडा तमाशा दुर 
वाह वाह गुंज राहा 

लगा दो नीलामी मेरी 
मै खुद को ही बेच राहा 
सारी भुमी बीक गयी है 
बनाऊं अपना घर कंहा 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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