वो सीसकी
देख आवाज आती है
अब भी उस रुदन की
सीस्कीयाँ लेती है वो
अब भी उस मकान मै
बुलती है वो तुमको
अब भी वो प्यार सै
बेटी ना बन सकी वो
आपके इनकार से
कोख मै जमी थी वो
ना वो अब फुल सखी
छुड कर दुखी दुखी
कंहा जा वो अब छुपी
अब भी याद आती वो
बीती होई मेरी गलती
आंखें भर जाती अब भी
वो उसकी वो सीसकी
देख आवाज आती है
अब भी उस रुदन की
सीस्कीयाँ लेती है वो
अब भी उस मकान मै
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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