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मै भी चला उसी दुकान मे


मै भी चला उसी दुकान मे

लगा रहा मै अपने आप से 
रोड़े आये हर उस मकान से 
दर्द जंह बिकता था अब तक 
मै भी चला उसी दुकान मे.......

खड़ा रहा और वो लुटता रहा 
आसमान बस यूँ ही देखता रहा 
उस बूंद को मन तरसता रहा 
उसका भी दाम यंहा लगता रहा 
मै भी चला उसी दुकान मे.......

बैठा रहा क्या सोचता रहा 
बिखरा बिखरा सिर्फ समेटता रहा
कबाड़ का करोबार फिर भी चलता रहा 
कबाड़ बन मै बस बिकता रहा 
मै भी चला उसी दुकान मे.......

बस चला गया इस तरंह मै
बेचा जब अपने आप को जब 
ना कुछ रहा अब पास मेरे 
अब सब बिका सा लगा मुझे 
मै भी चला उसी दुकान मे.......

लगा रहा मै अपने आप से 
रोड़े आये हर उस मकान से 
दर्द जंह बिकता था अब तक 
मै भी चला उसी दुकान मे.......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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