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छिद्रों वाली


छिद्रों वाली 

छिद्रों वाली जिंदगी 
समेट कर सब वो ले गयी 
खाली खाली ही रहा वो 
देर सबेर उस टूटे घड़े की तरह
वो सुराकों वाला घडा .....................

सब बहता ही गया ऐसे की 
रोके भी ना कुछ रोका यंह वो जो जा रहा है 
पल छुटा यंह बना अब अछुता यंहा 
छाता ना मिला कोई दूजा यंहा 
वो छिद्रों वाला छाता .....................

चली जा रही हवा ना जाने कंहा
हाथ फैला रहा राहों मै अलीग्न का मै यंह 
निकल गयी ना जाने कौन से छिद्र से वो कंहा
पडवा पडवा मै आयी वो इस दर पर अब यंह 
वो छिद्रों वाली हवा.........................

मौसम भी आया यंह वो भी गया यंह से 
बेकरार रहा मै इस तेरे जंहा मे
लौटा ना अब तू जब तू गया यंहा से 
जीवन का वो कोना खोया कंह पे 
वो छिद्रों वाला जिंदगी .....................

छिद्रों वाली जिंदगी 
समेट कर सब वो ले गयी 
खाली खाली ही रहा वो 
देर सबेर उस टूटे घड़े की तरह
वो सुराकों वाला घडा .....................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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