देख यंहा से .....
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दूर गाँव मै वो देख बसता है
पहाड़ों मै बसा तेरा वो दर्पण
टूटा टूटा सा अब क्यों लगता है
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दुर गाँव मै वो देख बसता है ....................
शहरों मै अब बसा लगता है
बंद गलियों मै टंगा लगता है
गले मै रस्से सा गुंठा लगता है
अपने आप से खिंजा लगता है
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दुर गाँव मै वो देख बसता है ....................
आता होगा तेरे पास वो चुपके से
हौले से कभी कभी वो भटके से
आँखों से तेरे नीर बह जाते होंगे
वो भी देख तुझ को बुलाते होंगे
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दुर गाँव मै वो देख बसता है ....................
गमसुम सा बैठा लगता है अब
अपनों से तो जुदा सा लगता है
बड़े पेड से इस तरह छुटा तो
पत्तों के संग अब उड़ा लगता है
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दुर गाँव मै वो देख बसता है ....................
खुश है तो इस खुशी के लिये
पर दुखी सा मन तेरा क्यों लगता है
अकेला जब तो रहता है किसी से
क्या तेरा घर तुझे अब भी दिखता है
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दुर गाँव मै वो देख बसता है ....................
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दूर गाँव मै वो देख बसता है
पहाड़ों मै बसा तेरा वो दर्पण
टूटा टूटा सा अब क्यों लगता है
देख यंहा से तेरा घर दिखता
दुर गाँव मै वो देख बसता है ....................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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