"गुमराह"
एक उम्र होती है
चार राहों मै खो जाती है
अपने पराये लगते हैं
पराये आपने लगते हैं
एक उम्र होती है ..............
जो खो जाती है
सुख सपनो मै सो जाती है
नादाँन सुख के लिये
दुःख मै व्यर्थ जाती है
एक उम्र होती है ..............
सोच ना जाने वो
होश ना जाने वो
जवानी की भोर मे क्यों
रात सी वो गुम जाती है
एक उम्र होती है ..............
अपने को समझ ना था
पिता पुत्र दोस्ती का नाता था
ना वो समझा ना तो समझा
वो गुमराह हो गया है
एक उम्र होती है ..............
एक उम्र होती है
चार राहों मै खो जाती है
अपने पराये लगते हैं
पराये आपने लगते हैं
एक उम्र होती है ..............
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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