जाने किस बात पै
एक पन्ना टूटा शाख से
साथ छुटा अब उस हाथ से
पहड़ों से उड़ता उड़ता गया
जाने किस बात पै
रूठा सा लगता है वो
उड़ा इस तरहं हवा से वो
हवा से भी जुदा सा लगता है वो
अपनों से छुटा वो पत्ता
जाने किस बात पै
साथ था कभी अपनों के
अकेले आज कंहा वो उड़ा चला
खोज रही है अब भी ऐ धरा
जो पन्ना टूटा इस शाख से
जाने किस बात पै
एक पन्ना टूटा शाख से
साथ छुटा अब उस हाथ से
पहड़ों से उड़ता उड़ता गया
जाने किस बात पै
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ