आप चलें कंहा?
हम बड़े होये यंहा
यही है वो धरा
बिना विचार किये
छोड़कर नम आँखों से
आप चलें कंहा .............
बचपन बिता यंहा
लडकपन छुटा यंहा
स्कुल की पाटी फूटी यंहा
वो दोस्ती भी छुटी यंहा
इन अपनों को छोड़
आप चलें कंहा .............
वो पीपल का पेड़ खड़ा
देख रहा है बस तेरी राह
कब बैठेगा इस छंव तले
लेकर हाथों मै गूढ़ चना
उन यादों को छोड़
आप चलें कंहा .............
देख वो छुटी राहा
बोला रही है तुझे यंहा
कभी नंगे कदमो से
दौडाता था तु रोज यंहा
इन कदमो की आहट छोड़
आप चलें कंहा .............
गाँव अब भी बुलता है
तुम्हे भी तो याद आता है
बड़े छूटों की बातों मै
वो अब भी इतराता है
बस तेरी कमी पाता है
आप चलें कंहा .............
भुला भुला सा तु
अब नजर सा आता है
जंजीरों जकड़ा सा
बंधा सा चला जाता है
उस पग को अब लेकर
तु कंहा को चला जाता है
हम बड़े होये यंहा
यही है वो धरा
बिना विचार किये
छोड़कर नम आँखों से
आप चलें कंहा .............
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि
बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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