मै कवि नही हूँ
ना मै कोई कवि हूँ
ना मै कोई कविता लिखता हूँ
अश्क बहते हैं जब अपने ही
उसे कलम के सहारे धो देता हूँ
पन्नों पर उभरी तकलीफ देख
तब जाकर मै अब सोचता हूँ
उभरता है जो कुछ इस मन मे
वो मै उस दिल पर लिख देता हूँ
ना मै कोई कवि हों
ना मै कोई कविता लिखता हों
परवाने सा मै जा लिपटाता हूँ
उष्ण रोशनी में मै भी अब जलता हूँ
समा की याद में मै भी लिख लेता हूँ
दर्द अपना इस तरह हल्का मै कर लेता हूँ
ना मै कोई कवि हों
ना मै कोई कविता लिखता हों
खुशी गम का अहसास मुझको भी होता है
धुप छावां में मै भी कभी अब आ बैठता हूँ
फुल खिलते चिडीया उड़ते मै भी देख लेता हूँ
उनको आपनी कल्पना मै भी कैद कर लेता हों
ना मै कोई कवि हों
ना मै कोई कविता लिखता हों
मै आपने को बाँधना नहीं चाहता इस तरहा
इसलिये शब्द अक्षर आपने खुद मुक्त कर लेता हूँ
लड़ता रहता हों उन से मै अकेला ही अक्सर
थक जात हों तो कलम अपनी बंद कर लेता हूँ
ना मै कोई कवि हों
ना मै कोई कविता लिखता हों
ना मै कोई कवि हूँ
ना मै कोई कविता लिखता हूँ
अश्क बहते हैं जब अपने ही
उसे कलम के सहारे धो देता हूँ
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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