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पहाड बोलता है


पहाड बोलता है 

पहाड बोलता है 
जंगलों चट्टानों नदीयुं संग डोलता है 
सुबह शाम खड़ा रहता है अकेला 
अडिग अटल अविचल विचारों संग 
आपना मुख वो खोलता है 
पहाड बोलता है ...............

नभ देखता उसको विस्मय से 
बादलों संग जब वो पहाड़ को घेरता है 
रास्ता रोक जब बरसते हैं मेघा एक रेघ मे 
अपना तन मन वो भीगोता है 
आपना मुख वो खोलता है 
पहाड बोलता है .............

प्रकृती की गोद मे दिन रैन वो गुजरता है
सुबह की धुप का स्वाद वो चखता है 
फूलों;डालियों पर पक्षी बन बैठाता है 
कल कल करती नदी सा वो बहता है 
आपना मुख वो खोलता है 
पहाड बोलता है .............

पहाड़ उदास उदास है ना जाने क्यों आज ?
उन खाली रिक्त स्थानों मे वो किसको खोजता है आज 
आस लगाये बैठा है वो ना जाने कब से उस दूर जाती सड़क पर 
किस की क़दमों की आहट पर वो बैचैन हो जाता है आज 
आपना मुख वो खोलता है 
पहाड बोलता है .............

बस खड़ा का खड़ा हरदम वो रहता है 
आँखों से अब उसके सब ओझल होता होआ बस देखता है 
आवाज लगा लगा कर थक गया है श्याद वो अब 
दर्द भरी नजरों से अब वो चुप चाप देखता है 
आपना मुख वो खोलता है 
पहाड बोलता है .............

पहाड बोलता है 
जंगलों चट्टानों नदीयुं संग डोलता है 
सुबह शाम खड़ा रहता है अकेला 
अडिग अटल अविचल विचारों संग 
आपना मुख वो खोलता है 
पहाड बोलता है ...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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