देख उछाल जाते
शब्द जब मचल जाते हैं
गुद गुदते हैं कभी
कभी गुन गुनते हैं
गोल गप्पे के स्वाद के घोल में
जवानी के वो दिन याद आते हैं
तेखी चाट संग मुस्कराते हैं
अक्सर उस ठेले पर खड़े मिल जाते थे
देख उछाल जाते
शब्द जब मचल जाते हैं .........
कभी मन गुब्बारे से संग उड़ जाता हैं
बिता बचपन दूर खड़ा हाथ हिलता है
वो हटपन वो बलपन आँखों से ओझल हो जाता है
अकेले मे तुम्हे भी तो वो कभी वो बोलता है
देख उछाल जाते
शब्द जब मचल जाते हैं .........
कभी कडक धुप थी अब शांत है
जीवन का ऐ अब अंतिम पड़ाव है
कोई शोर नहीं ना कोई मंजील है
पर अब भी तुम और गोल गप्पे की दुकान है
देख उछाल जाते
शब्द जब मचल जाते हैं .........
देख उछाल जाते
शब्द जब मचल जाते हैं
गुद गुदते हैं कभी
कभी गुन गुनते हैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीतबालकृष्ण डी ध्यानी
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