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अधर से लटकी


अधर से लटकी 

वो लाश जो 
अधर से लटकी 
टंगी इसी तरंह 
फंदे पर झटकी 
अधर से लटकी........

साँस ही नहीं है 
बस बेबसी मे भटकी 
बेजान सी झूल रही है वो 
वो अत्त्मा जो दहेज़ में तरसी 
अधर से लटकी .......

भूख प्यास की पुकार 
लगायी थी उसने भी गोहांर 
हताश था हैरन था वो 
सुखे की पडी मार से बीमार था वो 
अधर से लटकी .......

परेशान प्रश्न खड़ा है 
असफलता के आड़ में छुपा है 
फंदा वो झुला झुला सा 
अपना रास्ता वो भुला सा 
अधर से लटकी .......

ऐसे हैं कई सवाल 
जिसका क्या मिलेगा जवाब 
या फिर आंख बंद करले 
फंदा झुलैगा अब हर बार 
अधर से लटकी .......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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