आज के परिछेद में काव्य हास्य
आज की बात बताओं
किस्सा तुमको मै सुनाऊं
कहते है वो की मै लोगों को हँसाऊं
हंसी का पिटारा मै खोलों
अपने आप पर मै हंस लूँ
दर्द अपना अपने से कैसे छुपाऊं
कैद ऐ हजरत के पैगंब बंद
पैबन्द विभेद कंहा पाऊं
परिच्छेद का शोर कंहा छुपाऊं
कटाक्ष मारती मेरे व्यंग
अंत तक अन्तरंग वेदना भार
हास्य कैसे सम्भाल पायेगा
आज की बात बताओं
किस्सा तुमको मै सुनाऊं
कहते है वो की मै लोगों को हँसाऊं
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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