मै भी उस पथ पर
कुछ अल्फाज पीछे छुटे पड़े थे किसी के
उनको मै सिमटने में लगा हूँ
अधूरी थी कुछ कविता गजल लेख
उस पथ पर मै भी अब चलने लगा हूँ
कुछ अल्फाज ........
कुछ पडी थी कबाड़ी में
कुछ घर की चार दिवारी में
कुछ खाली पन्ना निहार रही थी
कुछ कलम का मन टटोल रही थी
कुछ कल्पना संग उड़ना चाह रही थी
कुछ बंदिशों में बंधी पडी थी
सब कुछ ना कुछ पूछ रही थी मुझसे
अंदर ही अंदर कह रही थी मुझको
कुछ अल्फाज ........
कुछ आज कुछ इतिहास
कुछ स्नेह कुछ विशवास
कंही क्रान्ती की आग कंही भूख कंही प्यास
महंगाई की मार गरीबी की हाहाकार
चुप बैठे नेता और सरकार
किसी को तू आगे आना होगा
हे मेरी कलम बन जा तू तलवार
अति है अंतर से हुंकार
कुछ अल्फाज ........
शांत मन समन्दर लहरा
अंधकार मै ज्योती फैला
सोये जन को तू अब जगा
जीने की रहा पर ले जा
उलझा मन तू अब सुलझा
व्यर्थ ना ऐ जीवन गंवा
उठा कलम और कर विचार
एक नये विश्व की नीव रख
मंजिल देख रही तेरी रहा
कुछ अल्फाज ........
कुछ अल्फाज पीछे छुटे पड़े थे किसी के
उनको मै सिमटने में लगा हूँ
अधूरी थी कुछ कविता गजल लेख
उस पथ पर मै भी अब चलने लगा हूँ
कुछ अल्फाज ........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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