कठपुतली खेल
अपने ही लगा रहा
बैठ अकेले से अकेला ठगा रह
कल्पनाओं पंख बीच ताला पड़ा रह
खुंठे मै खुद बंधा पड़ा रह
अपने में ही लगा रहा
उठाया मुझको उठ गया
सोच अपने से रूठ गया
उजाला था अँधेरा घिर गया
अकेला था,अकेला रह गया
अपने ही लगा रहा
खामोशी थी कुछ कह गया
पेड़ पैंसे से कैसे यंह लद गया
रिमोट था. कंट्रोल कर गया
कठपुतली खेल चल गया
अपने ही लगा रहा
अपने ही लगा रहा
बैठ अकेले से अकेला ठगा रह
कल्पनाओं पंख बीच ताला पड़ा रह
खुंठे मै खुद बंधा पड़ा रह
अपने में ही लगा रहा
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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