घूंट
घूंट पी मैंने अपने आप में
शराब मुझ पर भड़क गया
प्याला से नफरत की पहले
आखिर तक वो छलकता रहा
घूंट बढ़कर वो कौर गयी
अंदर से मुझे को निचोड़ गयी
ग्रास बना आहर सा उसका
बोतल सर पर तोड़ गयी
घूंट परिमाण दर्द हैरान
मसौदा मेरा अब तैयार था
ढांचा बिलकुल तैयार पड़ा था
शमशान दूर ही खड़ा था
घूंट ने ना दिया आराम
जुबान बोलती रही हराम
खेल घूंट का हुआ तमाम
इस शरीर को मेरा प्रणाम
घूंट पी मैंने अपने आप में
शराब मुझ पर भड़क गया
प्याला से नफरत की पहले
आखिर तक वो छलकता रहा
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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