अकेला पन
अश्क गिरते गिरते
कुछ कह से गये ....२
बेजुबान लहमो कीतरंह
वो सिसकती रही
अश्क गिरते गिरते
कुछ कह से गये ……………
सिमटी रही आवाज
चार दीवारों के पास …२
रूबरू होये वो अक्सर
चुपचाप उस कोने के साथ
अश्क गिरते गिरते
कुछ कह से गये ……………
बैठी रही वो
उस अकेले मन संग …२
नहीं पहूँचा वंहा
कोई भी अब तक
अश्क गिरते गिरते
कुछ कह से गये ……………
बिरहा का पल बुना
बुना बस उस पल पर ...२
कई सदीयुं से
फंसे उस जाल पर
अश्क गिरते गिरते
कुछ कह से गये ……………
अश्क गिरते गिरते
कुछ कह से गये ....२
बेजुबान लहमो कीतरंह
वो सिसकती रही
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
सोमवार दिनाक १५ /१० /२०१२ संध्या १६ :५७
बालकृष्ण डी ध्यानी
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