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कोना


कोना 

एक रिश्ता जब जुदा हो जाता है 
एक कोना खुद से बातें करने लगता है 
एक रिश्ता ऐसा भी 

प्रहर प्रहर बीत जाते उसके साथ में अकेले अब 
सुध -बुध ना जाने कंहा खोता जाता है 
एक रिश्ता ऐसा भी 

मन तन के लिये राजी नही होता है 
बीते पल संग वो अब सपने संजोता है 
एक रिश्ता ऐसा भी 

एक रिश्ता ऐसा भी अब पनपने लगता है 
टूटकर भी वो अपना अपना सा लगने लगता है 
एक रिश्ता ऐसा भी 

जज्बात बंध से जाते उस कोने साथ 
साथ कोई नहीं पर साथ होने का आभास होता रहता है 
एक रिश्ता ऐसा भी 

कल्पनाओं मे खोया रहता है वो इस तरह 
अकेले ही अपने भव एक नया विश्व बना लेता है 
एक रिश्ता ऐसा भी 

कोना उसमे खोजाता है इस तरह से 
वो भी अपने आप को अब कोना समझ लेता है 
एक रिश्ता ऐसा भी 

एक रिश्ता जब जुदा हो जाता है 
एक कोना खुद से बातें करने लगता है 
एक रिश्ता ऐसा भी 

एक उत्तराखंडी 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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