शीत ऐग्या
ठंडी ठंडी ब्यार बहणी या
ससरसा की मी ……खुद ऐणी या
देख हिमाला सफ़ेद कम्बलू उड़णु या
शीत ऋतू गढ़ देश मा आणु या
गाल लाल जनी सेब होंयां या
ऊँठ अखरोठा की दाणी जनी छिलयां या
कोयेडी पहड़ों मा रुमक ग्याई या
डाली बोटी पर अब मोल्यार छायी या
काम को स्वामी भैर परदेश ग्याँ या
घार आण छिन यानि ब्याल ऊँका रैबार आयी या
धीर ना मेरी जिकोडी अब धरैणी या
घुघूती ठंडी बथों क्या कहणी या
दिन चली जाला कणी भी रात णी सरेनी या
भोलहा मी फजल तड़ कैकी ससरसा जाणु या
ठंडी ठंडी ब्यार बहणी या
ससरसा की मी ……खुद ऐणी या
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
सोमवार दिनाक १५ /१० /२०१२ समय सवेरा १० :१६
बालकृष्ण डी ध्यानी
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