क्ख्क छे अब
भोल्हम बिकी
म्यारा मुल्की तू कैकी
घाम सैलण लगे
बगत गै अकल ऐण लगे
जिकड़ी झुरण किले
लट पट किले कैण लगे
छुंई पडी वहली यख
कै बाता मा बोती वहली वख
कालू दाड सी ग्याई
झालू फिर परती की आई
बालू क्या बोलण
अब सब ईणी हरचण
जग्वाल लगा रैबार पठा
अब कैल भी णी बचण
सब बिकी यख
माटू मोल क्ख्क छे अब
सब लुटी तब
क्या व्हालो अब
भोल्हम बिकी
म्यारा मुल्की तू कैकी
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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